जिला पंचायत अध्यक्ष की तरह यहां भी मतदान में सिर्फ बीडीसी ही भाग लेते हैं. वोट के लिए बैलेट पैपर या मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यहां उम्मीदवार के सामने वोटर को नंबर लिखना होता है. जिस प्रत्याशी के सामने 1 नंबर लिखा जाता है, मत उसी का माना जाता है.
पर्दे के पीछे की कहानी
दरअसल किताबों पर चुनावी प्रक्रिया काफी सरल है। लेकिन जमीन पर इसमें धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल किया जाता है. पहले पार्टियां इसमें शामिल नहीं होती थीं. हालांकि, कुछ सयम से उनकी भी सक्रियता देखी जा रही है. सबसे बड़ी बात है कि यहां प्रत्याशी को ये पता होता है कि उसके ब्लॉक में कितने बीडीसी हैं. ऐसे में उन्हें डराना, धमकाना या पैसे के दम पर अपने तरफ खींचना काफी आसान होता है. प्रत्याशियों के पैसे के साथ-साथ कई बार गाड़ी भी ऑफर की जाती है. अगर ऐसे भी बात ना बने, तो बाहुबली प्रत्याशी हिंसा करने से भी पीछे नहीं हटते हैं.
ब्लॉक प्रमुख को कितनी मिलती है सैलरी?
वैसे तो ब्लॉक प्रमुख को सैलरी नहीं मिलती है, लेकिन सरकार की तरफ से मानदेय तय है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर महीने करीब 7 हजार रुपये मानदेय मिलता है. इसके अलावा कुछ भत्ते भी मिलते हैं. किसी भी ब्लॉक प्रमुख का कार्यकाल 5 साल का होता है. लेकिन कार्यकाल के आधे समय के बाद साधारण बहुमत यानी 50 फीसदी से एक वोट ज्यादा के साथ ब्लॉक प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है और उसे हटाया जा सकता है।
क्या काम करते हैं ब्लॉक प्रमुख?
ब्लॉक प्रमुख क्या करते हैं यह जानने के लिए ये सझमना जरूरी है कि ब्लॉक क्या होता है? पंचायती राज के तहत लोगों के हाथ में प्रशासनिक कार्यों को देने के लिए जिलों को कई खंड में बांटा जाता है. इन खंड को विकास खंड और अंग्रेजी में ब्लॉक कहते हैं. इस ब्लॉक में जनता के सबसे बड़े प्रतिनिधि को ब्लॉक प्रमुख कहते हैं. यह ब्लॉक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी BDO के साथ मिलकर गांवों के विकास का काम करता है. दरअसल, एक ब्लॉक में 50-70 गांव होते हैं।
ब्लॉक प्रमुख का सबसे बड़ा काम पंचायत समिति की बैठक का आयोजन करना होता है. जिसमें वे क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान के साथ मिलकर विकास का एजेंडा तैयार करते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्लॉक स्तर हर साल करीब 5 करोड़ रुपये का बजट आता है. इस बजट के जरिए गांवों के अंदर विकास कार्य कराए जाते हैं।
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