चीन को दिया गया था मुंहतोड़ जवाब
लद्दाख की रेजांगला-पर्वत चोटी पर उस युद्ध में हमारे सैकड़ों जवानों की जान जा चुकी थी। उसके बाद चीन ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया था। युद्ध समाप्ति के 3 महीने बाद बर्फ पिघलने पर हमारे कुछ सैनिकों की लाशें मिलीं। तब वहां हमारे शहीद जवानों के हाथ में ग्रेनेड और टूटे हुए हथियार दिख रहे थे।
वीर-अहीर रेजांगला की गाथा
सेना के शिलालेखों पर लिखा है कि, रेजागंला युद्ध के वक्त 1962 में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला करके सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी लिखी गई थी। वहीं, चुशुल (लद्दाख) की हवाई पट्टी पर बने विशाल द्वार पर भी लिखा है- वीर अहीर रेजांगला की गाथा। रेजांगला की यह शौर्य गाथा भारतीय जवानों ने 18 नवंबर 1962 के दिन ही लिखी थी। जिसमें हीरवाल के बहादुरों की टुकड़ी ने जी-जान से मुकाबला किया था।
अब रेजांगला के शहीदों की याद में हर साल कार्यक्रम किए जाते हैं। कहा जाता है कि, आज भी रेजांगला कंपनी के नाम से जानी जाने वाली चार्ली कंपनी में अहीरवाल क्षेत्र के जवान शामिल हैं। वहीं, रेवाड़ी स्थित रेजांगला स्मारक पर उन शहीदों के नाम अंकित हैं।
रिपोर्ट: मोहम्मद नसीम
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