कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति की जमीन बिना जिलाधिकारी की अनुमति के अवैध रूप से ली गई। अधिग्रहण शर्तों का उल्लंघन कर शैक्षिक कार्य के लिए निर्माण के बजाय मस्जिद का निर्माण कराया गया। ग्राम सभा की सार्वजनिक उपयोग की चक रोड जमीन व नदी किनारे की सरकारी जमीन ले ली गई। किसानों से जबरन बैनामा करा लिया गया, जिसमें 26 किसानों ने पूर्व मंत्री एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष आजम खां के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। कोर्ट ने कहा विश्वविद्यालय का निर्माण पांच साल में होना था, जिसकी वार्षिक रिपोर्ट नहीं दी गई। कानूनी उपबंधों व शर्तों का उल्लंघन करने के आधार पर जमीन राज्य में निहित करने के आदेश पर हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की तरफ से दाखिल याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता एसएस ए काजमी व अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव ने बहस की। मालूम हो कि 7 नवंबर 2005 को सरकार ने ट्रस्ट को 400 एकड़ जमीन की मंजूरी दी, जिसमें से 12.50 एकड़ में विश्वविद्यालय बनाने की सीलिंग की गई। 17 जनवरी 2006 को 45.1 एकड़ जमीन तथा 16 सितंबर 2006 को 25 एकड़ अतिरिक्त जमीन की मंजूरी दी गई। एसडीएम की रिपोर्ट में कहा गया कि 24000 वर्ग मीटर जमीन में निर्माण कार्य कराया जा रहा है, जोकि शर्तों का उल्लंघन है।
याची का कहना था कि ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद आजम खां व सदस्य अब्दुल्ला आजम खां 26 फरवरी 2020 से सीतापुर जेल में बंद हैं। इसी मामले में जेल में बंद आजम खां की पत्नी तंजीन फातमा को करीब 10 महीने जेल में रहने के बाद 21 दिसंबर 2020 को जमानत मिल गई थी। एसडीएम की रिपोर्ट एक पक्षीय है। जेल में अध्यक्ष सचिव को नोटिस नहीं दिया गया। सरकार की तरफ से कहा गया कि अनुसूचित जाति की जमीन बिना अनुमति के ली गई। ऐसा अधिग्रहण अवैध है। ग्राम सभा व नदी किनारे की सार्वजनिक उपयोग की जमीन ले ली गई। शत्रु संपत्ति की जमीन भी मनमाने तरीके से ली गई। अधिग्रहण शर्तों के विपरीत विश्वविद्यालय परिसर में मस्जिद का निर्माण कराया गया। शासन की कार्यवाही नियमानुसार है। ट्रस्ट को सरकार ने 7 नवंबर 2005 को शर्तों के अधीन जमीन दी थी। स्पष्ट था कि शर्तों का उल्लंघन करने पर जमीन वापस राज्य में निहित हो जाएगी।
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