हल्द्वानी दंगा मामला में 50 आरोपियों की रिहाई के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में ज़मानत याचिकाओं पर बहस शुरू. जमीयत उलमा के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की सीनीयर ऐडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने नैनीताल जाकर बहस की।
हल्द्वानी पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद का अंत तक संघर्ष जारी रहेगा. हल्द्वानी दंगा मामला में पुलिस और जांच संगठनों के पक्षपात का यह कोई पहला मामला नहीं है। मुस्लमानों से जुड़े अधिकतर मामलों में लगभग हर राजय की पुलिस का व्यवहार समान होता है। कानून के अनुसार 90 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल कर दी जानी चाहिए ताकि आरोपी बनाया गया व्यक्ति अपनी रिहाई के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सके, लेकिन यह कितने दुख की बात है कि इस निर्देश को माना नहीं जाता।
हल्द्वानी दंगा मामला में जाँच एजेंसीयों और पुलिस का यह व्यवहार मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है, क्योंकि इस से न्याय की प्राप्ति में देरी हो जाती है। उन्होंने कहा कि इन गिरफ्तार किए गए लोगों में सात महिलाएं भी हैं और उन सब पर यू.ए.पी.ए. की धारा लगा दी गई है।
ऐसे में एक बड़ा प्रश्न यह है कि अपने स्कूल और अपनी इबादतगाह को बचाने के लिए प्रदर्शन करने वाले क्या आतंकवादी हो सकते हैं? जबकि पुलिस की फायरिंग से जो सात निर्दोष मारे गए उनके बारे में पूर्ण खामोशी है, मानो पुलिस और सरकार की नज़र में मानव जीवन कोई महत्व नहीं रखता।
मौलाना अरशद मदनी ( अध्यक्ष- जमीयत उलेमा ए हिन्द )
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